लेकिन, इन नंबरों से ज़्यादा हैरानी की बात यह है कि 1918 में फैली फ्लू की यह महामारी दो सालों के बाद हमेशा के लिए खत्म नहीं हुई! जी हां, अमेरिका में जीवन की दर को औसतन 12 साल कम कर देने वाले स्पैनिश फ्लू के कारण बने H1N1 वायरस को कई तरह के संक्रमणों के दौरान सक्रिय देखा जाता रहा. इसका मतलब यह है अगर 102 साल पुराने इस वायरस से अब तक गई जानों का पूरा ब्योरा जुटाया जाए तो बहुत ज़्यादा होगा. ‘तमाम वैश्विक महामारियों में सबसे भयानक’ स्पैनिश फ्लू कैसे रूप बदलकर सामने आता रहा?
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क्या तीसरी वेव के बाद खत्म हुई थी महामारी?स्पैनिश फ्लू के फैलने के 12 महीनों के भीतर संक्रमण की तीन वेव्स देखी गई थीं. पहले विश्व युद्ध के दौरान 1918 के आखिरी दिनों में यह वायरस सबसे खतरनाक रूप में दिखा था, जब सितंबर से नवंबर के बीच बड़ी संख्या में मौतें हुई थीं. लेकिन सवाल यह है कि 1919 में क्या तीसरी लहर के बाद यह संक्रमण या वायरस खत्म हो गया? विशेषज्ञों की मानें तो ‘बिल्कुल नहीं’.

1918 के फ्लू के दौरान अस्पतालों पर संक्रमित मरीज़ों का लोड हर देश में बेहद बढ़ गया था.
वास्तव में, इस वायरस के दायरे में पूरी दुनिया आ चुकी है इसलिए इसके लिए एक खास किस्म की इम्यूनिटी पैदा हो चुकी है. लेकिन इस वायरस का 1918 में जो स्ट्रेन था, वह ‘एंटीजेनिक ड्रिफ्ट’ प्रक्रिया के तहत लगातार म्यूटेट होता रहा. सीधे तौर पर 1918 के स्पैनिश फ्लू के वायरस के नये रूप 1919-1920 और 1920-1921 में फैले फ्लू संक्रमण के दौरान दिखे और उसके बाद मौसमी फ्लू में दिखते रहे. यही वायरस कई अन्य महामारियों में नये रूपों में नज़र आता रहा.
वायरस की 100 साल की यात्रा
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब सीज़नल फ्लू के लिए वैक्सीन आई और दुनिया को लगा कि वो राहत की सांस ले सकती थी, तबसे इस वायरस ने जान लेने की नई चालें सीख लीं. हर बार एक अलग भेष में यही वायरस नई महामारियां पैदा करता रहा. मिसाल के तौर पर 1918 के स्पैनिश फ्लू के H1N1 वायरस ने पहली बार भेष बदला तो 1957 में दुनिया के सामने पहली बार बर्ड फ्लू का खतरा देखा गया, जो कि म्यूटेट होकर H2N2 वायरस के तौर पर जाना गया.
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इस बर्ड फ्लू ने लाखों जानें लीं और दुनिया रिसर्च के माध्यम से इसे समझने की कोशिश ही कर रही थी, कि करीब 10 साल बाद 1968 में फिर लाखों लोगों को मौत के घाट उतारने वाला हॉंगकॉंग फ्लू महामारी बन गया. इस बार वायरस के नये भेष का नाम H3N2 था, जो कि 1918 वाले वायरस का ही एडवांस्ड रूप था. इसके बाद भी यह सफर रुका नहीं, बल्कि 21वीं सदी में भी चलता रहा.

1957 में फैले फ्लू के दौरान एक इलाज कैंप की तस्वीर.
साल 2009 में स्वाइन फ्लू का जो वैश्विक संक्रमण फैला, उसके परदे के पीछे की कहानी में भी वही 1918 वाला वायरस रहा. यह मूल रूप से बर्ड फ्लू ही था, जो सुअरों में फैलकर फिर मनुष्यों के लिए स्वाइन फ्लू के रूप में सामने आया. 2009 की इस महामारी में करीब 3 लाख लोगों की जान गई थी और अब भी इससे जानें जाती हैं. सवाल यह है कि वायरस कैसे अपना रूप बदल लेता है.
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जानकारों की मानें तो अगर कोई जीव या जानवर एक ही समय में दो अलग इन्फ्लुएंज़ा वायरसों से संक्रमित हो जाता है तो इस स्थिति में जीन्स इस तरह मिक्स और मैच होते हैं कि इनसे एक नये ही तरह का वायरस सामने आ जाता है, जिसका पहले कभी नामोनिशान ही नहीं रहा होता. जैसे कि 1918 फ्लू की एक ब्रांच सुअरों के संक्रमण के तौर पर जानी गई थी, जिसे स्वाइन इन्फ्लुएंज़ा कहा गया था.
यह अमेरिका में 1918 के बाद से लगातार देखी जाती रही और फिर दुनिया भर में समय के साथ फैलती रही. जब इस ब्रांच में संक्रमण की मिक्स एंड मैच प्रक्रिया हुई, तब यह स्वाइन फ्लू के खतरनाक रूप में सामने आया. अब आप समझ सकते हैं कि 1918 के इन्फ्लुएंज़ा की मौतों का आंकड़ा सिर्फ उसी समय का नहीं है, बल्कि यह लगातार तमाम महामारियों के भेष में बढ़ता ही रहा है. अब इसे आप करोड़ों और मौतों का ज़िम्मेदार भी कह सकते हैं.

किस साल किस तरह भारत में स्वाइन फ्लू ने ढाया कहर, इन्फोग्राफिक.
कैसे हुआ यह खुलासा?
इस पूरी रिसर्च में जेफरी टॉबेनबर्गर का नाम उल्लेखनीय है, जिन्होंने 1918 की महामारी फैलाने वाले वायरस के बारे में 1990 के दशक के आखिर में कई प्रामाणिक खुलासे किए. अब अमेरिका के नेशनल हेल्थ इंस्टिट्यूट्स की वायरस संबंधी संस्था के प्रमुख टॉबेनबर्गर ने कोविड 19 के दौर में साफ तौर पर कहा है कि हम आज भी यानी 102 साल बाद भी ‘1918 के महामारी काल’ में ही जी रहे हैं.
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टॉबेनबर्गर की मानें तो आप मौसमी फ्लू के दौरान जब संक्रमित होते हैं, तो उसमें भी जेनेटिक ट्रैस के ज़रिये देखा जा सकता है कि 1918 के वायरस की क्या भूमिका है. ‘पिछले 102 सालों में इन्फ्लुएंज़ा ए का हर संक्रमण किसी न किसी तरह उसी 1918 वायरस का ही नतीजा रहा है.’